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Daivik Apr 2021
तू राम हैं,रहीम भी
तू सर्वेंद्र हैं,जग-जुगान्तर का साक्षी।

विधिवत विविधता के वन का तू ही वनरक्षक हैं
लक्ष लक्ष्यों की पूर्ति में तू ही तो सहायक हैं।
अंधकार से प्रकाश तक पहुचने में तू ही सार्थी
दुष्बिचारों के दलदल का विनाशक भी तू ही।

भोला बाबा तू
बिन दोष हैं।

सर्वरक्षक तू
तू सर्वोबड़ी
तू ही तो अपार सुंदरी।

तेरी नीति चमत्कार हैं
तेरे सीख निराकार हैं
तेरी लीला अपरम्पार हैं
सत्य ही तू महान है ।

सरोवर एकांत का तू हैं
वृक्ष दान का तू
गंगा ज्ञान की तू हैं
पर्वत साधना की तू
राजा कुदरत का तू हैं।

न भूखा तू प्रेम का
न भोग का,न योग का
न श्रध्दा का,न भक्ति का
न रस का,न यश का।

तेरे नाम हज़ार
उनपर लिखे गीत लाख
परंतु एक तू
परे वाद के।

तू कौन हैं?
इस प्रश्न के कारण मरे कई
तेरा कोनसा रूप पाक हैं
इस पर लड़े गए युद्ध कई।

तू हैं परे संबंध के,परे आकार के
परे मोह के,परे धर्म के
परे रीति,परे इस विचित्र संस्कृति के
परे समय के,परे सृष्टि।

अनादि तू,अनंत हैं
तू रहा हैं सदैव के लिए
परिवर्तन के परे परे।

तू मन की रचना हैं,तू स्वयंभू
अस्तित्व मैं तू कुच्छ नही,आस्था में सब कुच्छ हैं तू।

तेरा अर्थ क्या
किसे पता
जानना असंभव है ।

तू आशा हैं,
विश्वास हैं।
My first hindi poem I wrote 5 years ago.I am an atheist lol.
Daivik Nov 2020
मैं बैठा था यूँ ही
मग्न अपनी सोंच मैं।
मुझें याद हैं कुछ लिख रहे थे
अध्यापक ब्लैकबोर्ड पे।

खिड़की से निकलकर एक धूप की किरण ने मेरे गालों को छुआ
मैं एसे ही अपने किताब में कुछ लिख रहा था
पता नहीं मुझे क्या हुआ
मुझें अपना बचपन दिख रहा था।

बाहर दो कबूतर लड़ रहे थे
वह दिन मुझे अब भी क्यूँ याद हैं?
बच्चे हँस रहे थे, झगड़ रहे थे।
खैर अब वह दिन बीत चुका
मेरी समय से बस यही फरियाद हैं।

मेरा दोस्त मुझसे कुछ कह रहा था
मैं यह कविता लिख रहा था
और मन ही मन मुस्कुरा रहा था।
Daivik Mar 2022
कोई नहीं पराया, मेरा घर संसार है।

मैं ना बँधा हूँ देश-काल की जंग लगी जंजीर में,
मैं ना खड़ा हूँ जाति-पाति की ऊँची-नीची भीड़ में,
मेरा धर्म ना कुछ स्याही शब्दों का सिर्फ गुलाम है,
मैं बस कहता हूँ कि प्यार है तो घट-घट में राम है,
मुझ से तुम ना कहो कि मंदिर-मस्जिद पर मैं सर टेक दूँ,
मेरा तो आराध्य आदमी, देवालय हर द्वार है।
कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है।

कहीं रहे कैसे भी मुझको प्यारा यह इन्सान है,
मुझको अपनी मानवता पर बहुत-बहुत अभिमान है,
अरे नहीं देवत्व, मुझे तो भाता है मनुजत्व ही,
और छोड़कर प्यार नहीं स्वीकार सकल अमरत्व भी,
मुझे सुनाओ तुम न स्वर्ग-सुख की सुकुमार कहानियाँ,
मेरी धरती सौ-सौ स्वर्गों से ज्यादा सुकुमार है।
कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है ।।
 
मुझे मिली है प्यास विषमता का विष पीने के लिए,
मैं जन्मा हूँ नहीं स्वयं-हित, जग-हित जीने के लिए,
मुझे दी गई आग कि इस तम में मैं आग लगा सकूँ,
गीत मिले इसलिए कि घायल जग की पीड़ा गा सकूँ,
मेरे दर्दीले गीतों को मत पहनाओ हथकड़ी,
मेरा दर्द नहीं मेरा है, सबका हाहाकार है।
कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है ।।

मैं सिखलाता हूँ कि जिओ औ' जीने दो संसार को,
जितना ज्यादा बाँट सको तुम बाँटो अपने प्यार को,
हँसों इस तरह, हँसे तुम्हारे साथ दलित यह धूल भी,
चलो इस तरह कुचल न जाये पग से कोई शूल भी,
सुख, न तुम्हारा सुख केवल जग का भी उसमें भाग है,
फूल डाल का पीछे, पहले उपवन का श्रृंगार है।
कोई नहीं पराया मेरा घर सारा संसार है।

- गोपालदास 'नीरज'
Daivik Apr 2021
"दो गज की दूरी
रखना हैं ज़रूरी"

"ओ! जा रहे हो रैली में,
तब छूट मिली है  पूरी"

"क्योंकि चुनाव वाले प्रदेशों में
कोरोना को आने की
नही मिली हैं मंज़ूरी"

भारत सरकार द्वारा
जनहित में जारी
Daivik May 2021
ये सब छोरो ,ये सब तो चलता रहेगा
वो लड़ाते रहेंगे, हम लड़ते रहेंगे
ये सत्ता की नदी हैं
इसका न शुरवात हैं न अंत
बस डूब मत जाना।
Daivik Apr 2022
मै नावक हु इस कश्ती का
जीवन जिसका नाम हैं
मै पालक हु इस धरती का
यही मेरा प्रधान हैं
गायक हु उस गीत का
जो तम में लाता प्रकाश हैं ।

में न रुकूँगा
न झुकूंगा
न ठहरूंगा
में लहरूँगा
चलते रहूंगा जब तक
सामने कोई राह हैं।
सामने कोई राह हैं।
Daivik Jun 2022
जैसी तैसी ज़िन्दगी
यू हीं हैं कट रही
टेढ़ी-मेढ़ी राहो से
जैसे तैसे गुज़र रही

जहा सुख का फ्रूट मिले
जूस बनाके पी जाओ
किसे पता क्या होगा कल
इसी पल में जीवन जी जाओ

हार और जीत के संघर्ष में
सुख और दुख के जंगल से
इनके संगम से उत्पन्न जो नदी
उसी का नाम जिंदगी
Daivik Apr 2022
कुछ करने का मन नही करता,
मरने का भी नही
Daivik May 2021
यह नदियां यूँ ही बहती रहेंगी
लाशो को गवाह बनाकर
उस दर्द का जो "वे" इनकार करते रहे
Daivik Apr 2022
हमेशा हार थोरे ही सकते हो
कभी तोह जीतोगे ही।
Daivik Mar 2021
सत्य हैं तो हैं क्या
अगर हैं तो हैं कहा

क्या सत्य नश्वर हैं
सत्य के क्या स्वर हैं

क्या सबका सत्य एक हैं
या सत्य भिन्न,अनेक हैं

क्या सत्य हमेशा वही रहेगा
या समय के साथ पल-पल बदलेगा

किसका सत्य सत्य हैं
क्या कोई भी सत्य सत्य हैं?
Daivik Oct 2021
सावन की पहली बारिश
हरा खेत लहलहाता हैं।
सावन की पहली बारिश
इस माटी को महकाता हैं।

बूंद-बूंद मछलती
खग नए सुरो में गाते हैं
पानी की बौछार में
जीव जंतु नहाते हैं।

फूल-फूल में आनंदोदय
टिमटिमाती क्यारी
गा रहा हैं सबका हृदय
मिटि थकावट सारी।

पर जैसी ही सब घर पहुचें
सर्दी लगी बिंदास
दो घंटे बाद पाए गए
बिस्तर में करते हुए आराम।

गरम पकोड़े तलकर खालू
सोच रहा हर मानव प्राणी
पर अपनी तोंद की गहराई देख
छा रही हर प्रत्येक चहरे पे उदासी।

रास्ते नदी के धार बनते
फुटपाथ गंगा के घाट बनते
परेशानी के पानी का स्तर बढ़ता
कभी गम ,कभी खुशाली।

जीवन के इस मौसम को मेरा प्रणाम हैं
जल के इस वरदान को,कोटि-कोटि आभार हैं।
Daivik Oct 2021
कल आएगा,कल जाएगा

पर बात तो ये हैं

कि हमसे ना हो पायेगा।
Daivik Feb 2021
আমার মনে আছে ভালো করে
ওই দিন
আমি শুয়ে ছিলাম
তোমার কোলে

তুমি কেন গেলে
আমাদের ছেঁড়ে
চিরকালের জন্যে

ওই দিন
আমি ভুলবোনা
ওই শীতকাল
ওই জ্বলন্ত আম কাঠের
তাপ
এখন মনে পরে
আমি ক্রন্দিত
মনের মধ্যে
পথভ্রষ্ট
এই জীবনে

তুমি কেনো চলেগালে
আকাশের জন্যে
In bengali
Daivik Apr 2021
আনন্দময়
আমার হৃদয়
নব বর্ষের প্রথম সূর্যোদয়

ঠাকুরের গানে নাচে পাখি
এই দিনকে এত ভালো বাসী
সাদা লাল অম্বরের নীচে
খেলে বাংলার সবাই বাসী

নুতুন বছর আনে উন্নতি
এতই আমার প্রার্থনা
শুভ নববর্ষ
পয়লা বৈশাখের শুভকামনা
Shubho noboborsho

— The End —