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Lighten your past,
To brighten your future.
How many of us would like to Die?
I think for certain, No would be reply.
But in case happens only by chance,
Just I'm guessing asking in advance.
As none of us is having  any control,
One day, but certain death be on roll.
For time of death, uncertain unknown,
But you can rejoice no time to groan.
God  has given this freedom  to you,
Have option to cheer your death too.
f you decide for gifting someone a life,
Post death, donating organs to survive.
This Choice of gifting organs post death.
Makes you stronger in facing the wrath.
And Goddess of death shall  also be shy,
Salute you surely if this option you Try.

Ajay Amitabh Suman: All Rights Reserved
Life is extremely uncertain and so is the death. As a man can not decide his time of death, his parents , similarly we also do not know as to when our time has come tell this world a good buy.  We do not and cannot have any control over the Timing of our Death but certainly on the quality of Death. Still we can choose what kind of death we are destined for. God has provided us an opportunity to turn this misfortunate incident into delight by gifting our ***** post death, to some one,  gifting a life. This act of donating our organs to some one , post our death, we can still see this world , through others body. We are having option to outlive our life and death too.
Either you pray or either worship,
To get rid of pain, misery & hardship.
All your effort shall must go in vain,
Your problems be there & you be in pain.
Can you grow Mango on a berry tree?
By bowing to God and asking for glee?
Certainly a prayer, not fetch a result,
Unless work hard increase your pulse.
Your action decide, your future indeed,
Not prayer important, your action & deed.
Then Why to bother , why to complain,
God is your creation you given the name.
He neither can grant a prayer or boon.
Because he exists like bright day moon.
By mere worshipping to God, one never gets mango out of a Guava Tree. Similarly, a Mango Tree never bears the fruits of Guava. Howsoever sincerely you pray to God, it is your action , which is decisive of your fate. YOU GET THE FRUIT, AS YOU SOW A SEED. WORK IS IMPORTANT, NOT PRAYER INDEED.
ऐसे  शक्ति  पुंज  कृष्ण  जब  शिशुपाल  मस्तक हरते थे,
जितने  सारे  वीर  सभा में थे सब चुप कुछ ना कहते थे।
राज    सभा   में  द्रोण, भीष्म थे  कर्ण  तनय  अंशु माली,
एक तथ्य था  निर्विवादित श्याम  श्रेष्ठ   सर्व  बल शाली।


वो   व्याप्त   है   नभ  में जल  में  चल में  थल में भूतल में,
बीत   गया जो   पल   आज जो  आने वाले उस कल में।
उनसे   हीं   बनता  है  जग ये  वो  हीं तो  बसते हैं जग में,
जग के डग डग  में शामिल हैं शामिल जग के रग रग में।


कंस  आदि   जो   नरा  धम  थे  कैसे  क्षण  में    प्राण लिए,
जान  रहा  था  दुर्योधन  पर  मन  में  था  अभि मान लिए।
निज दर्प में पागल था उस क्षण क्या कहता था ज्ञान नही,
दुर्योधन  ना कहता  कुछ भी  कहता था अभिमान  कहीं।


गिरिधर  में   अतुलित  शक्ति  थी  दुर्योधन  ये  जान  रहा,
ज्ञात  कृष्ण  से  लड़ने­  पर  क्या पूतना का परिणाम रहा?
श्रीकृष्ण   से  जो  भिड़ता   था  होता   उसका   त्राण  नहीं ,  
पर  दुर्योधन  पर  मद   भारी था   लेता       संज्ञान   नहीं।


है तथ्य विदित ये क्रोध अगन उर में लेकर हीं जलता था ,
दुर्योधन   के  अव  चेतन  में   सुविचार कब   फलता   था।
पर  निज स्वार्थ  सिद्धि  को  तत्तपर रहता कौरव  कुमार,
वक्त  पड़े   तो  कुटिल   बुद्धि  युक्त   करता  था व्यापार।


अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित
जब  कान्हा के होठों पे  मुरली  गैया  मुस्काती थीं,
गोपी सारी लाज वाज तज कर दौड़े आ जाती थीं।
किया  प्रेम  इतना  राधा  से कहलाये थे राधेश्याम,
पर भव  सागर तारण हेतू त्याग  चले थे राधे धाम।

पूतना , शकटासुर ,तृणावर्त असुर अति अभिचारी ,
कंस आदि  के  मर्दन कर्ता  कृष्ण अति बलशाली।
वो कान्हा थे योगि राज पर भोगी बनकर नृत्य करें,
जरासंध जब रण को तत्पर भागे रण से कृत्य रचे।

सारंग  धारी   कृष्ण  हरि  ने वत्सासुर संहार किया ,
बकासुर और अघासुर के प्राणों का व्यापार किया।
मात्र  तर्जनी  से हीं तो  गिरि धर ने गिरि उठाया था,
कभी देवाधि पति इंद्र   को घुटनों तले झुकाया था।

जब पापी  कुचक्र  रचे  तब  हीं  वो चक्र चलाते हैं,
कुटिल  दर्प सर्वत्र  फले  तब  दृष्टि  वक्र  उठाते हैं।
उरग जिनसे थर्र थर्र काँपे पर्वत जिनके हाथों नाचे,
इन्द्रदेव भी कंपित होते हैं नतमस्तक जिनके आगे।

एक  हाथ में चक्र हैं  जिनके मुरली मधुर बजाते हैं,
गोवर्धन  धारी डर  कर  भगने  का खेल दिखातें है।
जैसे  गज  शिशु से  कोई  डरने का  खेल रचाता है,
कारक बन कर कर्ता  का कारण से मेल कराता है।

अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित
भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएँ अद्भुत हैं। उनसे न केवल स्त्रियाँ , पुरुष अपितु गायें भी अगाध प्रेम करती थीं। लेकिन उनका प्रेम व्यक्ति परक न होकर परहित की भावना से ओत प्रोत था। जिस राधा को वो इतना प्रेम करते थे कि आज भी उन्हें राधेकृष्ण के नाम से पुकारा जाता है। जिस राधा के साथ उनका प्रेम इतना गहरा है कि आज भी मंदिरों में राधा और कॄष्ण की मूर्तियाँ मिल जाती है। वोही श्रीकृष्ण जग के निमित्त अपनी वृहद भूमिका को निभाने हेतू श्रीराधा का त्याग करने में जरा भी नहीं हिचकिचाते हैं। और आश्चर्य की बात तो ये हूं एक बार उन्होंने श्रीराधा का त्याग कर दिया तो जीवन में पीछे मुड़कर फिर कभी नहीं देखा। श्रीराधा की गरिमा भी कम नहीं है। श्रीकृष्ण के द्वारिकाधीश बन जाने के बाद उन्होंने श्रीकृष्ण से किसी भी तरह की कोई अपेक्षा नहीं की, जिस तरह की अपेक्षा सुदामा ने रखी। श्रीकृष्ण का प्रेम अद्भुत था तो श्रीराधा की गरिमा भी कुछ कम नहीं। कविता के इस भाग में भगवान श्रीकृष्ण के बाल्य काल के कुछ लीलाओं का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत है दीर्घ कविता दुर्योधन कब मिट पाया का पांचवा भाग।
कार्य दूत का जो होता है अंगद ने अंजाम दिया ,
अपने स्वामी रामचंद्र के शक्ति का प्रमाण दिया।
कार्य दूत का वही कृष्ण ले दुर्योधन के पास गए,
जैसे कोई अर्णव उदधि खुद प्यासे अन्यास गए।

जब रावण ने अंगद को वानर जैसा उपहास किया,
तब कैसे वानर ने बल से रावण का परिहास किया।
ज्ञानी रावण के विवेक पर दुर्बुद्धि अति भारी थी,
दुर्योधन भी ज्ञान शून्य था सुबुद्धि मति मारी थी।

ऐसा न था श्री कृष्ण की शक्ति अजय का ज्ञान नहीं ,
अभिमानी था मुर्ख नहीं कि हरि से था अंजान नहीं।
कंस कहानी ज्ञात उसे भी मामा ने क्या काम किया,
शिशुओं का हन्ता पापी उसने कैसा दुष्काम किया।

जब पापों का संचय होता धर्म खड़ा होकर रोता था,
मामा कंस का जय होता सत्य पुण्य क्षय खोता था।
कृष्ण पक्ष के कृष्ण रात्रि में कृष्ण अति अँधियारे थे ,
तब विधर्मी कंस संहारक गिरिधर वहीं पधारे थे।

जग के तारण हार श्याम को माता कैसे बचाती थी ,
आँखों में काजल का टीका धर आशीष दिलाती थी।
और कान्हा भी लुकके छिपके माखन दही छुपाते थे ,
मिटटी को मुख में रखकर संपूर्ण ब्रह्मांड दिखाते थे।

कभी गोपी के वस्त्र चुराकर मर्यादा के पाठ पढ़ाए,
पांचाली के वस्त्र बढ़ाकर चीर हरण से उसे बचाए।
इस जग को रचने वाले कभी कहलाये थे माखनचोर,
कभी गोवर्धन पर्वत धारी कभी युद्ध तजते रणछोड़।

अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित
जिस प्रकार अंगद ने रावण के पास जाकर अपने स्वामी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम चन्द्र के संधि का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था , ठीक वैसे हीं भगवान श्रीकृष्ण भी महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले कौरव कुमार दुर्योधन के पास पांडवों की तरफ से  शांति प्रस्ताव लेकर गए थे। एक दूत के रूप में अंगद और श्रीकृष्ण की भूमिका एक सी हीं प्रतीत होती है । परन्तु वस्तुत:  श्रीकृष्ण और अंगद के व्यक्तित्व में जमीन और आसमान का फर्क है । श्रीराम और अंगद के बीच तो अधिपति और प्रतिनिधि का सम्बन्ध था ।  अंगद तो मर्यादा पुरुषोत्तम  श्रीराम के संदेशवाहक मात्र थे  । परन्तु महाभारत के परिप्रेक्ष्य में श्रीकृष्ण पांडवों के सखा , गुरु , स्वामी ,  पथ प्रदर्शक आदि सबकुछ  थे । किस तरह का व्यक्तित्व दुर्योधन को समझाने हेतु प्रस्तुत हुआ था , इसके लिए कृष्ण के चरित्र और  लीलाओं का वर्णन समीचीन होगा ।  कविता के इस भाग में कृष्ण का अवतरण और बाल सुलभ लीलाओं का वर्णन किया गया है ।  प्रस्तुत है दीर्घ कविता  "दुर्योधन कब मिट पाया" का चतुर्थ  भाग।
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